अबरार अहमद के शेर
हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँख
हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है
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याद भी तेरी मिट गई दिल से
और क्या रह गया है होने को
कहीं कोई चराग़ जलता है
कुछ न कुछ रौशनी रहेगी अभी
भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल
इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर
क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा
पानी में है क्या और भी पानी से ज़ियादा
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टैग : पानी
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हम यक़ीनन यहाँ नहीं होंगे
ग़ालिबन ज़िंदगी रहेगी अभी
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टैग : दुनिया
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मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता
और ये दिल अपनी रवानी में रहा
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टैग : दिल
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जिस काम में हम ने हाथ डाला
वो काम मुहाल हो गया है
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तू कहीं बैठ और हुक्म चला
हम जो हैं तेरा बोझ ढोने को
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गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है
फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया न करे
ढंग के एक ठिकाने के लिए
घर-का-घर नक़्ल-ए-मकानी में रहा
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टैग : हिजरत
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फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा है
कि उस को छोड़ पाता हूँ न उस को थाम रखता हूँ
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गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़
मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर
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यूँ ही निमटा दिया है जिस को तू ने
वो क़िस्सा मुख़्तसर ऐसा नहीं था
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जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे
जाने यूँ है भी कि ऐसा नज़र आता है मुझे
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मरकज़-ए-जाँ तो वही तू है मगर तेरे सिवा
लोग हैं और भी इस याद पुरानी में कहीं
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टैग : याद
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कभी तो ऐसा है जैसे कहीं पे कुछ भी नहीं
कभी ये लगता है जैसे यहाँ वहाँ कोई है
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ये दाग़-ए-इश्क़ जो मिटता भी है चमकता भी है
ये ज़ख़्म है कि निशाँ है मुझे नहीं मालूम
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टैग : इश्क़
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हर रुख़ है कहीं अपने ख़द-ओ-ख़ाल से बाहर
हर लफ़्ज़ है कुछ अपने मआनी से ज़ियादा
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ये ऊँट और किसी के हैं दश्त मेरा है
सवार मेरे नहीं सार-बाँ नहीं मेरा
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ये यक़ीं ये गुमाँ ही मुमकिन है
तुझ से मिलना यहाँ ही मुमकिन है
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