Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

वजूद पर शेर

वजूद के उनवान के तहत

मुंतख़ब किए गए अशआर इन्सानी वजूद की अहमियत और पूरी काइनात के सियाक़ में इस की मानविय्यत को वाज़ेह करते हैं, साथ ही ये भी बताते हैं कि इस की इस अहमियत और मानविय्यत के हवाले से इस के तक़ाज़े क्या हैं और निज़ाम-ए-काइनात में इस की कारकर्दगी की क्या-क्या सूरतों हैं। इस शायरी का एक पहलू इन्सानी वजूद की दाख़िली दुनिया की सैर भी है । हमारा ये इंतिख़ाब आपको पसंद आएगा क्योंकि ये एक उमूमी सतह पर हम सब के वजूदी मसाइल का बयानिया है।

अदा हुआ क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र

लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ

मैं अपने वजूद की सज़ा हूँ

अतहर नफ़ीस

ख़त्म होने दे मिरे साथ ही अपना भी वजूद

तू भी इक नक़्श ख़राबे का है मर जा मुझ में

मुसव्विर सब्ज़वारी

ख़ाक हूँ लेकिन सरापा नूर है मेरा वजूद

इस ज़मीं पर चाँद सूरज का नुमाइंदा हूँ मैं

अनवर सदीद

ये जो मैं हूँ ज़रा सा बाक़ी हूँ

वो जो तुम थे वो मर गए मुझ में

अम्मार इक़बाल

मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है

तिरी तरफ़ भी चलूँ तो ठहर ठहर जाऊँ

अहमद नदीम क़ासमी

तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की

मैं अपनी ज़ात से इंकार किस तरह करता

फ़रहत शहज़ाद

मुझे शक है होने होने पे 'ख़ालिद'

अगर हूँ तो अपना पता चाहता हूँ

ख़ालिद मुबश्शिर

अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना

तो फिर ज़मीं पर ये आसमाँ का वजूद किस क़हर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया

मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया

फ़ाज़िल जमीली

हमें तो इस लिए जा-ए-नमाज़ चाहिए है

कि हम वजूद से बाहर क़याम करते हैं

अब्बास ताबिश

मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका

फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं

हादी मछलीशहरी

रात दिन गर्दिश में हैं लेकिन पड़ा रहता हूँ मैं

काम क्या मेरा यहाँ है सोचता रहता हूँ मैं

महेंद्र कुमार सानी

अब कोई ढूँड-ढाँड के लाओ नया वजूद

इंसान तो बुलंदी-ए-इंसाँ से घट गया

कालीदास गुप्ता रज़ा

मैं भी यहाँ हूँ इस की शहादत में किस को लाऊँ

मुश्किल ये है कि आप हूँ अपनी नज़ीर मैं

फ़रहत एहसास

हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल

तिरा वजूद नहीं है तो मेरा साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ

ये ज़हर इतने दिनों से मेरे वजूद में कैसे पल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने

चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए