तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया
सर-ए-शाम जैसे बिसात-ए-दिल कोई ख़स्ता-हाल समेट ले
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में
लगी थी जान की बाज़ी बिसात उलट डाली
ये खेल भी हमें यारों ने हारने न दिया
ज़िंदगी की बिसात पर 'बाक़ी'
मौत की एक चाल हैं हम लोग
ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात
कहीं जुनूँ में उलट दूँ न इस जहान को मैं