वा'दे का ए'तिबार तो है वाक़ई मुझे
ये और बात है कि हँसी आ गई मुझे
'आलम' दिल-ए-असीर को समझाऊँ किस तरह
कम-बख़्त ए'तिबार के क़ाबिल नहीं है वो
यही तो ए'तिबार-ए-शब-कदा है
मिरा हासिल है ये कार-ए-ज़ियाँ इश्क़
बड़े पते की बताऊँ बड़े मज़े की कहूँ
जो आप मुझ पे करें ए'तिबार थोड़ा सा