नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल 24
नज़्म 11
अशआर 2
वा'दे का ए'तिबार तो है वाक़ई मुझे
ये और बात है कि हँसी आ गई मुझे
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कोई किस तरह राज़-ए-उल्फ़त छुपाए
निगाहें मिलीं और क़दम डगमगाए
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