आलम ख़ुर्शीद
ग़ज़ल 48
अशआर 26
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े
तुझ से हो कर हम ख़फ़ा ख़ुद से ख़फ़ा रहने लगे
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पूछ रहे हैं मुझ से पेड़ों के सौदागर
आब-ओ-हवा कैसे ज़हरीली हो जाती है
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बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
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हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं
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मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
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