अब्र पर शेर
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए
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गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है
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ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
अब्र बरसे तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है
गो बरसती नहीं सदा आँखें
अब्र तो बारा मास होता है
फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं
हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है
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या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर
या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे
हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा
अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा
बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए
अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए
उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं
लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया
अब्र की तीरगी में हम को तो
सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब