मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल 20
अशआर 37
चुरा के मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं
बहाना ये है कि मेहंदी लगाए बैठे हैं
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कुछ अर्ज़-ए-तमन्ना में शिकवा न सितम का था
मैं ने तो कहा क्या था और आप ने क्या जाना
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क्या हमारी नमाज़ क्या रोज़ा
बख़्श देने के सौ बहाने हैं
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जान इंसाँ की लेने वालों में
एक है मौत दूसरा है इश्क़
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ग़ैरों को भला समझे और मुझ को बुरा जाना
समझे भी तो क्या समझे जाना भी तो क्या जाना
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