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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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कालीदास गुप्ता रज़ा

1925 - 2001 | मुंबई, भारत

प्रमुख स्कॉलर / दीवान-ए-ग़ालिब को काल-क्रम के अनूसार संकलित करने के लिए विख्यात

प्रमुख स्कॉलर / दीवान-ए-ग़ालिब को काल-क्रम के अनूसार संकलित करने के लिए विख्यात

कालीदास गुप्ता रज़ा के शेर

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ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी

सिमट के गए सब आप की अदाओं में

अज़ल से ता-ब-अबद एक ही कहानी है

इसी से हम को नई दास्ताँ बनानी है

हम मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज

हाँ भरी बज़्म में वो बोल पाई होगी

चमन का हुस्न समझ कर समेट लाए थे

किसे ख़बर थी कि हर फूल ख़ार निकलेगा

दुनिया तो सीधी है लेकिन दुनिया वाले

झूटी सच्ची कह के उसे बहकाते होंगे

अब कोई ढूँड-ढाँड के लाओ नया वजूद

इंसान तो बुलंदी-ए-इंसाँ से घट गया

हयात लाख हो फ़ानी मगर ये सुन रखिए

हयात से जो है मक़्सूद ग़ैर-फ़ानी है

बहार आई गुलों को हँसी नहीं आई

कहीं से बू तिरी गुफ़्तार की नहीं आई

सामना आज अना से होगा

बात रखनी है तो सर दे देना

ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म

मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया

बात अगर करनी थी क्यूँ चमन में आए थे

रंग क्यूँ बिखेरा था फूल क्यूँ खिलाए थे

लब-ए-ख़िरद से यही बार बार निकलेगा

निकालने ही से दिल का ग़ुबार निकलेगा

जब फ़िकरों पर बादल से मंडलाते होंगे

इंसाँ घट कर साए से रह जाते होंगे

सुराग़-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत का ढूँडियो कहीं

कि उन की राख हवा में बिखेर आया मैं

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