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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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महबूब पर चित्र/छाया शायरी

महबूब के बारे मे कौन

सुनना या कुछ सुनाना नहीं चाहता। एक आशिक़ के लिए यही सब कुछ है कि महबूब की बातें होती रहें और उस का तज़किरा चलता रहे। महबूब के तज़किरे की इस रिवायत में हम भी अपनी हिस्से दारी बना रहे हैं। हमारा ये छोटा सा इन्तिख़ाब पढ़िए जो महबूब की मुख़्तलिफ़ जहतों को मौज़ू बनाता है।

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

हम ख़ुदा के कभी क़ाइल ही न थे

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे

जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे

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