उस के बा'द अगली क़यामत क्या है किस को होश है
ज़ख़्म सहलाता था और अब दाग़ दिखलाता हूँ मैं
सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
तेरा दामन दूर नहीं था हाथ हमीं फैला न सके
ये तो सच है कि हम तुझे पा न सके तिरी याद भी जी से भुला न सके
तिरा दाग़ है दिल में चराग़-सिफ़त तिरे नाम की ज़ेब-ए-गुलू-कफ़नी
वो जो तेरा दाग़ ग़ुलामी माथे पर लिए फिरता है
उस का नाम तो 'इंशा' ठहरा नाहक़ को बदनाम है चाँद
वो जुदा मुझ से हो गया लेकिन
दाग़ दिल से जुदा नहीं होता
ले कर रुख़ पर इतने कलंक
लगता हूँ ख़ुश-रू भी मैं
झाड़ आया हूँ अपने दामन को
दाग़ बाज़ार में पड़े हुए हैं