आसरा पर शेर
दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा
मैं गिर पड़ूँगा देख मुझे आसरा न दे
आसरा दे के मेरे अश्क न छीन
यही ले दे के बचा है मुझ में
कुछ कह दो झूट ही कि तवक़्क़ो बंधी रहे
तोड़ो न आसरा दिल-ए-उम्मीद-वार का
भले ही छाँव न दे आसरा तो देता है
ये आरज़ू का शजर है ख़िज़ाँ-रसीदा सही
ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ
ज़िंदगी तुझ से तअल्लुक़ खोखला साबित हुआ