रज़ा हमदानी के शेर
बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरह
मिरे वजूद में वुसअत मिरी समा न सकी
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ता'ना देते हो मुझे जीने का
ज़िंदगी मेरी ख़ता हो जैसे
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पास-ए-आदाब-ए-वफ़ा था कि शिकस्ता-पाई
बे-ख़ुदी में भी न हम हद से गुज़रने पाए
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टैग : बेख़ुदी
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गोया थे तो कोई भी नहीं था
अब चुप हैं तो शहर देखता है
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क़ुर्बत तिरी किस को रास आई
आईने में अक्स काँपता है
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इक बार जो टूटे तो कभी जुड़ नहीं सकता
आईना नहीं दिल मगर आईना-नुमा है
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टैग : आईना
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अजब चीज़ है ये मोहब्बत की बाज़ी
जो हारे वो जीते जो जीते वो हारे
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टैग : मोहब्बत
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भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
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