संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल26
शेर21
हास्य शायरी1
ई-पुस्तक3
चित्र शायरी 1
ऑडियो 1
वीडियो4
क़िस्सा14
तंज़-ओ-मज़ाह1
हरी चंद अख़्तर के शेर
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया
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जिन्हें हासिल है तेरा क़ुर्ब ख़ुश-क़िस्मत सही लेकिन
तेरी हसरत लिए मर जाने वाले और होते हैं
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अब आप आ गए हैं तो आता नहीं है याद
वर्ना हमें कुछ आप से कहना ज़रूर था
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अगर तेरी ख़ुशी है तेरे बंदों की मसर्रत में
तो ऐ मेरे ख़ुदा तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता
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मिलेगी शैख़ को जन्नत हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस बात पर महशर बपा होगा
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रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा
किसी ने कुछ लिखा होगा किसी ने कुछ लिखा होगा
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हाँ वो दिन याद हैं जब हम भी कहा करते थे
इश्क़ क्या चीज़ है इस इश्क़ में क्या होता है
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भरोसा किस क़दर है तुझ को 'अख़्तर' उस की रहमत पर
अगर वो शैख़-साहिब का ख़ुदा निकला तो क्या होगा
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शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें
कुछ ख़ुदा के क़हर कुछ इनआम की बातें करें
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शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
मिरी दुनिया में बंदे के ख़ुदा होने का वक़्त आया
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जो ठोकर ही नहीं खाते वो सब कुछ हैं मगर वाइज़
वो जिन को दस्त-ए-रहमत ख़ुद सँभाले और होते हैं
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शब-ए-ग़म वहम सुनता है सदाएँ
गुमाँ होता है कोई आ रहा है
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उन्हें देखा तो ज़ाहिद ने कहा ईमान की ये है
कि अब इंसान को सज्दा रवा होने का वक़्त आया
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मिरे चमन की ख़िज़ाँ मुतमइन रहे कि यहाँ
ख़ुदा के फ़ज़्ल से अंदेशा-ए-बहार नहीं
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यही होता है कि तदबीर को नाकाम करे
और फ़रमाइए तक़दीर से क्या होता है
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सितम-कोशी में दिल-सोज़ी भी शामिल होती जाती है
मोहब्बत और मुश्किल और मुश्किल होती जाती है
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दाता है बड़ा रज़्ज़ाक़ मिरा भरपूर ख़ज़ाने हैं उस के
ये सच है मगर ऐ दस्त-ए-दुआ' हर रोज़ तक़ाज़ा कौन करे
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नेमतों को देखता है और हँस देता है दिल
महव-ए-हैरत हूँ कि आख़िर क्या है मेरे दिल के पास
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जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास
कश्ती-ए-हस्ती नज़र आती है अब साहिल के पास
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मिरे चमन की ख़िज़ाँ मुतमइन रहे कि यहाँ
ख़ुदा के फ़ज़्ल से अंदेशा-ए-बहार नहीं
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