गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल 8
अशआर 13
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई
अब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
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दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए
न तो ग़म रहा न ख़ुशी रही न जुनूँ रहा न परी रही
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बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच
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वही 'तर्ज़' तुझ पे रहीम है ये उसी का फ़ैज़-ए-करीम है
कि असातिज़ा के भी रंग में जो ग़ज़ल कही वो खरी रही
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क़ितआ 17
पुस्तकें 3
चित्र शायरी 2
क्या ज़िद है कि बरसात भी हो और नहीं भी हो तुम कौन हो जो साथ भी हो और नहीं भी हो फिर भी उन्हीं लम्हात में जाने से फ़ाएदा? पल भर को मुलाक़ात भी हो और नहीं भी हो