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मोहम्मद अल्वी
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गाड़ी आती है लेकिन आती ही नहीं
रेल की पटरी देख के थक जाता हूँ मैं
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धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
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मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है
कौन अब आ के असीरों को रिहाई देगा
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हर वक़्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख
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पुस्तकें 11
चित्र शायरी 15
कोई हादसा कोई सानेहा कोई बहुत ही बुरी ख़बर अभी कहीं से आएगी! ऐसी जान-लेवा फ़िक्रों में सारा दिन डूबा रहता हूँ रात को सोने से पहले अपने-आप से कहता हूँ भाई मिरे दिन ख़ैर से गुज़रा घर में सब आराम से हैं कल की फ़िक्रें कल के लिए उठा रक्खो मुमकिन हो तो अपने-आप को मौत की नींद सुला रक्खो!!
और कोई चारा न था और कोई सूरत न थी उस के रहे हो के हम जिस से मोहब्बत न थी इतने बड़े शहर में कोई हमारा न था अपने सिवा आश्ना एक भी सूरत न थी इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ जैसे किसी को भी अब उस की ज़रूरत न थी अब तो किसी बात पर कुछ नहीं होता हमें आज से पहले कभी ऐसी तो हालत न थी सब से छुपाते रहे दिल में दबाते रहे तुम से कहें किस लिए ग़म था वो दौलत न थी अपना तो जो कुछ भी था घर में पड़ा था सभी थोड़ा बहुत छोड़ना चोर की आदत न थी ऐसी कहानी का मैं आख़िरी किरदार था जिस में कोई रस न था कोई भी औरत न थी शेर तो कहते थे हम सच है ये 'अल्वी' मगर तुम को सुनाते कभी इतनी भी फ़ुर्सत न थी