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मोहम्मद अल्वी
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धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
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रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
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आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
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अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे
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अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
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पुस्तकें 11
चित्र शायरी 15
कोई हादसा कोई सानेहा कोई बहुत ही बुरी ख़बर अभी कहीं से आएगी! ऐसी जान-लेवा फ़िक्रों में सारा दिन डूबा रहता हूँ रात को सोने से पहले अपने-आप से कहता हूँ भाई मिरे दिन ख़ैर से गुज़रा घर में सब आराम से हैं कल की फ़िक्रें कल के लिए उठा रक्खो मुमकिन हो तो अपने-आप को मौत की नींद सुला रक्खो!!
वीडियो 24
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