बेरोज़गारी पर शेर
तलाश-ए-रिज़्क़ का ये मरहला अजब है कि हम
घरों से दूर भी घर के लिए बसे हुए हैं
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की
और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया
ताज़ा वारिद हूँ मियाँ और ये शहर-ए-दिल है
कुछ कमाने को यहाँ कार-ए-ज़ियाँ ढूँडता हूँ