aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बेख़ुदी पर नज़्में

बे-ख़ुदी शुऊर की हालत

से निकल जाने की एक कैफ़ीयत है। एक आशिक़ बे-ख़ुदी को किस तरह जीता है और इस के ज़रीये वो इश्क़ के किन किन मुक़ामात की सैर करता है इस का दिल-चस्प बयान इन अशआर में है। इस तरह के शेरों की एक ख़ास जहत ये भी है कि इन के ज़रीये क्लासिकी आशिक़ की शख़्सियत की परतें खुलती हैं।

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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