बेख़ुदी पर नज़्में
बे-ख़ुदी शुऊर की हालत
से निकल जाने की एक कैफ़ीयत है। एक आशिक़ बे-ख़ुदी को किस तरह जीता है और इस के ज़रीये वो इश्क़ के किन किन मुक़ामात की सैर करता है इस का दिल-चस्प बयान इन अशआर में है। इस तरह के शेरों की एक ख़ास जहत ये भी है कि इन के ज़रीये क्लासिकी आशिक़ की शख़्सियत की परतें खुलती हैं।