यशवर्धन मिश्रा
ग़ज़ल 7
अशआर 15
रंग सारे आ गए 'आरिज़ पे मेरे
जब कहा उस ने मुझे होली मुबारक
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रख लिया था मैं ने रोज़ा जाँ तुम्हारे नाम का
तुम को देखा ख़्वाब में और मेरी सहरी हो गई
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तुम्हारे बिन नहीं लेते कभी करवट अकेले हम
तुम्हारी याद भी करवट हमारे साथ लेती है
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दिल का कमरा रौशनी से भर गया
जब जला दीपक तुम्हारी याद का
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बना होगा किसी भी रोज़ तो पत्थर बना होगा
कहीं फिर बा'द में वो शख़्स चारागर बना होगा
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