यशब तमन्ना
ग़ज़ल 19
नज़्म 16
अशआर 4
करने को कुछ नहीं है नए साल में 'यशब'
क्यों ना किसी से तर्क-ए-मोहब्बत ही कीजिए
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समझ सका न उसे मैं क़ुसूर मेरा है
कि मेरे सामने तो वो खुली किताब रहा
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पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई
अब लिखेंगे किताब-ए-तंहाई
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हक़ीक़तों से मफ़र चाही थी 'यशब' मैं ने
पर अस्ल अस्ल रहा और ख़्वाब ख़्वाब रहा
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