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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वसीम नादिर

1974 | बदायूँ, भारत

1990 के दशक के मारूफ़ उर्दू ग़ज़ल शायर

1990 के दशक के मारूफ़ उर्दू ग़ज़ल शायर

वसीम नादिर

ग़ज़ल 71

अशआर 35

मैं ख़ुशबुओं के ज़िक्र पे ख़ामोश ही रहा

हालाँकि एक फूल मिरे हाफ़िज़े में था

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हम चाहते थे मौत ही हम को जुदा करे

अफ़्सोस अपना साथ वहाँ तक नहीं हुआ

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बहुत तेज़ाब फैला है गली-कूचों में नफ़रत का

मोहब्बत फिर भी अपने काम से बाहर निकलती है

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सब अपने नाम की तख़्ती लगाए बैठे हैं

पता सभी को है ये सल्तनत ख़ुदा की है

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सब लोग जो हैरत से तुझे देख रहे हैं

सर तेरा बहुत छोटा है दस्तार बड़ी है

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पुस्तकें 1

 

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