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Sarwat Zehra's Photo'

महत्वपूर्ण पाकिस्तानी शायरात में विख्यात, अमरीका में प्रवास

महत्वपूर्ण पाकिस्तानी शायरात में विख्यात, अमरीका में प्रवास

सरवत ज़ेहरा

ग़ज़ल 17

नज़्म 27

अशआर 13

कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझे भी क्यूँ

इस आग को तो ख़ून में हल कर दिया गया

जाने वाले को चले जाना है

फिर भी रस्मन ही पुकारा जाए

जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों को रेज़ा रेज़ा करते हैं

मैं उन लम्हों को सी कर रात का बिस्तर बनाती हूँ

बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है

और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है

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मिरे जज़्बों को ये लफ़्ज़ों की बंदिश मार देती है

किसी से क्या कहूँ क्या ज़ात के अंदर बनाती हूँ

पुस्तकें 3

 

वीडियो 7

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Dard Ke Aawe Me Chuhla Na Jale Tab Kiya Ho

Karachi born well known poet Dr.Sarwat Zehra who is currently residing in Dubai, reciting her poetries at Rekhta Studio.She is one of the few female writers who have haven't restricted herself to a certain part, but prefers to write over subjects which have either not touched previously or less has been said in this regard so far.Sarwat's poety is the reflection of her own emotions and feelings yet not different from the mass. सरवत ज़ेहरा

अजाइब-ख़ाना

मिरा वजूद सरवत ज़ेहरा

आमरियत का क़सीदा

भारी बूटों-तले रौंदते जाइए सरवत ज़ेहरा

इंटरनेट-स्थान की मलिका

इंटरनेट-स्थान पे बैठी ख़्वाब की मलका! सरवत ज़ेहरा

निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो

सरवत ज़ेहरा

बे-परों की तितली

ये झाड़न की मिट्टी से सरवत ज़ेहरा

बिंत-ए-हव्वा

बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है सरवत ज़ेहरा

ऑडियो 11

ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है

निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो

हज़ार टूटे हुए ज़ावियों में बैठी हूँ

Recitation

"वर्जीनिया" के और शायर

 

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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