aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1961 | भोपाल, भारत
दुल्हन की मेहंदी जैसी है उर्दू ज़बाँ की शक्ल
ख़ुशबू बिखेरता है इबारत का हर्फ़ हर्फ़
मैं तुम्हारे शहर की तहज़ीब से वाक़िफ़ न था
पत्थरों से की नहीं थी गुफ़्तुगू पहले कभी
ग़ज़ल में जब तलक एहसास की शिद्दत न हो शामिल
फ़क़त अल्फ़ाज़ की कारीगरी महसूस होती है
कोई भी शख़्स दुनिया में तुम्हें छोटा नज़र न आए
तुम अपने सोचने का दायरा इतना बड़ा कर लो
हम एहतियात की ऐसी मिसाल देते हैं
तुम्हारा ज़िक्र भी आया तो टाल देते हैं
Deewan-e-Sandeep
2012
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