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सफ़ी लखनवी

1862 - 1950 | लखनऊ, भारत

क्लासिकी के आख़िरी प्रमुख शायरों में अहम नाम। व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की

क्लासिकी के आख़िरी प्रमुख शायरों में अहम नाम। व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की

सफ़ी लखनवी

ग़ज़ल 7

नज़्म 1

 

अशआर 9

ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना

ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना

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जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले

गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो

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देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का

क्या जाने क्या हो पर्दा जो उट्ठे नक़ाब का

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मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं

इसे नींद यूँ आती अगर इंतिज़ार होता

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पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे

मरने के इंतिज़ार में जीना पड़ा मुझे

पुस्तकें 17

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