1853 - 1934 | ख़ैराबाद, भारत
शराब पर शायरी के लिए प्रसिध्द , जब कि कहा जाता है कि उन्हों ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया।
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
होता है फ़रिश्ता कोई इंसाँ नहीं होता
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
जैसी पाई शराब पी ली
Intikhab-e-Fitna
Intikhab-e-Kulliyat-e-Riyaz Khairabadi
1982
इंतिख़ाब-ए-रियाज़ ख़ैराबादी
1959
Intikhab-e-Riyaz Khairabadi
1983
Kalam-e-Riyaz
कलाम-ए-रियाज़ ख़ैराआबादी
1960
Kalam-e-Riyaz Khairabadi
2004
Maikhana-e-Riyaz
1945
क़ुल्क़ुल-ए-मीना
1998
Riyaz Khairabadi
1964
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो तो दो घड़ी फ़िराक़ में अपनी बसर न हो
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