रिन्द लखनवी
ग़ज़ल 37
अशआर 51
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
तू हाए गुल पुकार मैं चिल्लाऊँ हाए दिल
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ
जब तो इक सूरत भी थी अब साफ़ वीराना हुआ
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा
चाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
दीद-ए-लैला के लिए दीदा-ए-मजनूँ है ज़रूर
मेरी आँखों से कोई देखे तमाशा तेरा
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्ताँ से मैं
किस बुत में शहर-ए-हिन्द के शान-ए-ख़ुदा न थी
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए