नावक हमज़ापुरी
ग़ज़ल 2
नज़्म 1
रुबाई 8
दोहा 3
मैं हूँ लौह-ए-वजूद पर ऐसा एक सवाल
चुप हैं मेरे जवाब में रोज़ महीने साल
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आगे पीछे रख नज़र ज़ाहिर बातिन भाँप
ग़ाफ़िल पा कर डस न ले आस्तीन का साँप
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उल्फ़त करना दिल लगी तर्क-ए-मोहब्बत खेल
जो समझे वो इश्क़ के इम्तिहान में फ़ेल
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