तिरी याद में थी वो बे-ख़ुदी कि न फ़िक्र-ए-नामा-बरी रही
मिरी वो निगारिश-ए-शौक़ भी कहीं ताक़ ही पे धरी रही
शेयर कीजिए
गई फ़स्ल-ए-गुल तो न गुल रहे न गुलों की जामा-दरी रही
न वो रंग-ओ-बू की फ़ज़ा रही न चमन की जल्वागरी रही
शेयर कीजिए
Recitation
join rekhta family!
You have exhausted 5 free content pages per year. Register and enjoy UNLIMITED access to the whole universe of Urdu Poetry, Rare Books, Language Learning, Sufi Mysticism, and more.