मोहम्मद असदुल्लाह के शेर
इक दनदनाती रेल सी उम्रें गुज़र गईं
दो पटरियों के बीच वही फ़ासले रहे
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महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से
चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
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ऐ जाते बरस तुझ को सौंपा ख़ुदा को
मुबारक मुबारक नया साल सब को
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टैग : नया साल
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आब-दीदा हूँ मैं ख़ुद ज़ख़्म-ए-जिगर से अपने
तेरी आँखों में छुपा दर्द कहाँ से देखूँ
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टैग : आब दीदा
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