मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल 19
अशआर 10
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद
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तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे
ये बंदा ज़माने से ख़फ़ा मेरे लिए है
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न नमाज़ आती है मुझ को न वज़ू आता है
सज्दा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है
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सारी दुनिया ये समझती है कि सौदाई है
अब मिरा होश में आना तिरी रुस्वाई है
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वही दिन है हमारी ईद का दिन
जो तिरी याद में गुज़रता है
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