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महबूब ख़िज़ां

1930 - 2013 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान में नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

पाकिस्तान में नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

महबूब ख़िज़ां

ग़ज़ल 22

नज़्म 9

अशआर 25

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते

एक मोहब्बत काफ़ी है

बाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है

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तुम्हें ख़याल नहीं किस तरह बताएँ तुम्हें

कि साँस चलती है लेकिन उदास चलती है

मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले

तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं

देखो दुनिया है दिल है

अपनी अपनी मंज़िल है

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वीडियो 15

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

महबूब ख़िज़ां

महबूब ख़िज़ां

महबूब ख़िज़ां

'ख़िज़ाँ' में ख़ूबियाँ ऐसे बहुत हैं

महबूब ख़िज़ां

चाँद के मुसाफ़िर

ज़िंदगी को देखा है ज़िंदगी से भागे हैं महबूब ख़िज़ां

मोहब्बत पर न भूलो मोहब्बत बे-कसी है

महबूब ख़िज़ां

ये जो हम कभी कभी सोचते हैं रात को

महबूब ख़िज़ां

महबूब ख़िज़ां

अकेली बस्तियाँ

बे-कस चमेली फूले अकेली आहें भरे दिल-जली महबूब ख़िज़ां

चाही थी दिल ने तुझ से वफ़ा कम बहुत ही कम

महबूब ख़िज़ां

दीवार से गुफ़्तुगू

किसी हँसती बोलती जीती-जागती चीज़ पर महबूब ख़िज़ां

मोहब्बत को गले का हार भी करते नहीं बनता

महबूब ख़िज़ां

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