जीना क़ुरैशी
ग़ज़ल 13
अशआर 4
मिरी बेबसी पे न मुस्कुरा ये बजा कि मैं तिरी ख़ाक-ए-पा
जो हिला के रख दे फ़लक को भी वो असर है अब मिरी आह में
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ये नाद-ए-अली का अजब मो'जिज़ा था
सभी तीर पलटे कमानों की जानिब
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हर बार सुहूलत से मुझे भूलने वाले
इस बार कहीं मैं भी तुझे भूल न जाऊँ
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तू मुख़िल जब से हुआ है मिरी तन्हाई में
ऐ ग़म-ए-यार मिरी ख़ुद से मुलाक़ात गई
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