हसन काज़मी
अशआर 3
ख़ूबसूरत हैं आँखें तिरी रात को जागना छोड़ दे
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे
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सब मिरे चाहने वाले हैं मिरा कोई नहीं
मैं भी इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूँ
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दो चार दिन के ज़ुल्म नहीं हैं यज़ीद के
पीते हैं लोग आज भी पानी ख़रीद के
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