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हफ़ीज़ जौनपुरी

1865 - 1918 | जौनपुर, भारत

अपने शेर 'बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है' के लिए मशहूर।

अपने शेर 'बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है' के लिए मशहूर।

हफ़ीज़ जौनपुरी

ग़ज़ल 69

अशआर 42

अख़ीर वक़्त है किस मुँह से जाऊँ मस्जिद को

तमाम उम्र तो गुज़री शराब-ख़ाने में

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आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो

इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़

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क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए

अभी से आँख चुराते हो इक नज़र के लिए

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जाओ भी जिगर क्या है जो बेदाद करोगे

नाले मिरे सुन लोगे तो फ़रियाद करोगे

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जो दीवानों ने पैमाइश की है मैदान-ए-क़यामत की

फ़क़त दो गज़ ज़मीं ठहरी वो मेरे दश्त-ए-वहशत की

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पुस्तकें 7

 

ऑडियो 10

इधर होते होते उधर होते होते

कहा ये किस ने कि वा'दे का ए'तिबार न था

जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब

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