aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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गोपाल मित्तल

1901 - 1993 | दिल्ली, भारत

अपनी साहित्यिक पत्रिका 'तहरीक' के लिए विख्यात।

अपनी साहित्यिक पत्रिका 'तहरीक' के लिए विख्यात।

गोपाल मित्तल

ग़ज़ल 31

नज़्म 13

अशआर 9

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले

हँसी रही है तिरी सादगी पर

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फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़

उस ख़ौफ़ का किसी ने ख़ुदा नाम रख दिया

क्या कीजिए कशिश है कुछ ऐसी गुनाह में

मैं वर्ना यूँ फ़रेब में आता बहार के

तर्क-ए-तअल्लुक़ात ख़ुद अपना क़ुसूर था

अब क्या गिला कि उन को हमारी ख़बर नहीं

ख़ुदा गवाह कि दोनों हैं दुश्मन-ए-परवाज़

ग़म-ए-क़फ़स हो कि राहत हो आशियाने की

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क़िस्सा 3

 

पुस्तकें 503

चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 5

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

ज़बान रक़्स में है और झूमता हूँ मैं

तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं

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