फ़रियाद आज़र के शेर
न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए
ख़ुदा करे कि नया साल सब को रास आए
-
टैग : नया साल
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
ऐसी ख़ुशियाँ तो किताबों में मिलेंगी शायद
ख़त्म अब घर का तसव्वुर है मकाँ बाक़ी है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बंद हो जाता है कूज़े में कभी दरिया भी
और कभी क़तरा समुंदर में बदल जाता है
जो दूर रह के उड़ाता रहा मज़ाक़ मिरा
क़रीब आया तो रोया गले लगा के मुझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है
ये मकाँ रात को फिर घर में बदल जाता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है
अब भी कुछ लोग हैं ज़िंदा कि जहाँ बाक़ी है
-
टैग : दुनिया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं उस की बातों में ग़म अपना भूल जाता मगर
वो शख़्स रोने लगा ख़ुद हँसा हँसा के मुझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं अपनी रूह लिए दर-ब-दर भटकता रहा
बदन से दूर मुकम्मल वजूद था मेरा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं जिस में रह न सका जी-हुज़ूरियों के सबब
ये आदमी है उसी कामयाब मौसम का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम इब्तिदा ही में पहुँचे थे इंतिहा को कभी
अब इंतिहा में भी हैं इब्तिदा से लिपटे हुए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड