aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1960 | न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका
औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ
अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़
ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ी हूँ
वो आए तो रंग सँवरने लगते हैं
जैसे बिछड़ा यार भी कोई मौसम है
मैं भी न थी कलाम में इतनी फ़राख़-दिल
कुछ वो भी इख़्तिसार से आगे न जा सका
जिस बादल ने सुख बरसाया जिस छाँव में प्रीत मिली
आँखें खोल के देखा तो वो सब मौसम लम्हाती थे
Ladkiyan Adhoori Hain
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