बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल 8
अशआर 12
अहद के साथ ये भी हो इरशाद
किस तरह और कब मिलेंगे आप
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कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
दूसरी बात दूसरा मतलब
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बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
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मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
कि इस में ख़ैर भी है और शर बंद
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वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
है चित भी उन की है पट भी उन की है जीत उन की है मात मेरी
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