बशीर महताब
ग़ज़ल 11
अशआर 25
हसीं यादें वो बचपन की कहीं दिल से न खो जाएँ
मैं अपने आशियाने में खिलौने अब भी रखता हूँ
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जिसे मंज़िल समझ कर रुक गए हम
वहीं से अपना आग़ाज़-ए-सफ़र था
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मोहब्बत बाँटना सीखो मोहब्बत है अता रब की
मोहब्बत बाँटने वाले तवील-उल-उम्र होते हैं
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ये बातों में नर्मी ये तहज़ीब-ओ-आदाब
सभी कुछ मिला हम को उर्दू ज़बाँ से
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मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें
हर नए रोज़ नया फ़ित्ना बयाँ करती हैं
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