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अज़ीज़ हैदराबादी

1873/74 - 1949

अज़ीज़ हैदराबादी

ग़ज़ल 18

अशआर 25

उस ने सुन कर बात मेरी टाल दी

उलझनों में और उलझन डाल दी

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नाले हैं आहें हैं रोना तड़पना

बे-ख़ुद हूँ तिरी याद में फ़ुर्सत के दिन आए

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बहुत कुछ देखना है आगे आगे

अभी दिल ने मिरे देखा ही क्या है

मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में

पीता हूँ मैं शराब मिला कर गुलाब में

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वो सुनें या सुनें नाला-ओ-फ़रियाद 'अज़ीज़'

आप हरगिज़ करें तर्क तक़ाज़ा अपना

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