aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1873/74 - 1949
उस ने सुन कर बात मेरी टाल दी
उलझनों में और उलझन डाल दी
नाले हैं न आहें हैं न रोना न तड़पना
बे-ख़ुद हूँ तिरी याद में फ़ुर्सत के दिन आए
बहुत कुछ देखना है आगे आगे
अभी दिल ने मिरे देखा ही क्या है
मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में
पीता हूँ मैं शराब मिला कर गुलाब में
वो सुनें या न सुनें नाला-ओ-फ़रियाद 'अज़ीज़'
आप हरगिज़ न करें तर्क तक़ाज़ा अपना
Deewan-e-Azeez
Riyaz-e-Ishrat
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