अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल 32
अशआर 76
अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है
तुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को
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एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स
ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं
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शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए
इतनी कड़वाहट है मुँह में कैसे मीठी बात करें
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- ग़ज़ल देखिए
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त
कौन जंगल में उगे पेड़ को पानी देगा
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- ग़ज़ल देखिए
मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को
देखने वालों ने देखा भी न छू कर मुझ को
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