आशू मिश्रा
ग़ज़ल 29
नज़्म 6
अशआर 3
क़ुबूल कर के इसे राब्ता बहाल करो
कहीं ये फूल मिरी आख़िरी पुकार न हो
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यहाँ पे आह-ओ-फ़ुग़ाँ दर्द-ओ-ग़म का नाम नहीं
मिरा कलाम है ये 'मीर' का कलाम नहीं
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सरसरी 'मीर' का दीवान नहीं खुलता है
मुख़्तसर खुलने में इंसान नहीं खुलता है
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चित्र शायरी 1
कोई आ कर नहीं जाता दिलों के आशियानों से रिहाई का कोई रस्ता नहीं इन क़ैद-ख़ानों से मछेरे कश्तियों में बैठ कर के गा रहे हैं गीत हवाएँ मुस्कुरा कर मिल रही हैं बादबानों से ज़मीं वालों ने जब से आसमाँ की ओर देखा है परिंदे ख़ौफ़ खाने लग गए ऊँची उड़ानों से ये सूखे ज़ख़्म हैं या रंग हैं तस्वीर माज़ी के मुझे गुज़रे ज़माने याद आए इन निशानों से हमें अपनी लड़ाई इस ज़मीं पर ख़ुद ही लड़नी है फ़रिश्ते तो नहीं आने यहाँ पर आसमानों से तुम्हारा दिल यहाँ पर खो गया तो कैसी हैरत है बरेली में तो झुमके तक निकल जाते हैं कानों से