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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अनंनद राम मुख़लिस

1699 - 1751

अनंनद राम मुख़लिस

अशआर 2

फूल पर गुलशन के गोया दाना-ए-शबनम नहीं

आशिक़ों के हाल पर आँखें फिराती है बहार

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धूम आने की ये किस की गुलज़ार में पड़ी है

हाथ अरगजी का पियाला नर्गिस लिए खड़ी है

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