अमित शर्मा मीत
ग़ज़ल 27
अशआर 24
ग़लत-फ़हमियाँ 'मीत' रक्खो न दिल में
वही सच नहीं जितना तुम ने सुना है
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दिल टूटा तो 'मीत' समझ में ये आया
इश्क़ वफ़ा सब एक पहेली निकली है
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शोर-शराबा रहता था जिस आँगन में
आज वहाँ से बस ख़ामोशी निकली है
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हमारा हिज्र भी अब मसअला बन
ज़माने में उछलता जा रहा है
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