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अली अकबर अब्बास

1948 | पाकिस्तान

अली अकबर अब्बास

ग़ज़ल 21

नज़्म 3

 

अशआर 10

इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं

हम जो रौशनी होते हम पे भी झपटती रात

अपना आप नहीं है सब कुछ अपने आप से निकलो

बदबूएँ फैला देता है पानी का ठहराव

मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ

और अपने ख़्वाब की आब-ओ-हवा में रहता हूँ

फ़रेब-ए-माह-ओ-अंजुम से निकल जाएँ तो अच्छा है

ज़रा सूरज ने करवट ली ये तारे डूब जाएँगे

शाएर! तेरा दर्द बड़ा शाएर! तेरी सोच बड़ी

शाएर! तेरे सीने में इस जैसा लाख बहे दरिया

पुस्तकें 3

 

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