अहमद अक़ील रूबी के शेर
किताब खोल के देखूँ तो आँख रोती है
वरक़ वरक़ तिरा चेहरा दिखाई देता है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere