अफ़ज़ल इलाहाबादी
ग़ज़ल 21
अशआर 15
तू जुगनू है फ़क़त रातों के दामन में बसेरा कर
मैं सूरज हूँ तू मुझ से आश्नाई कर नहीं सकता
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में इज़्तिराब के आलम में रक़्स करता रहा
कभी ग़ुबार की सूरत कभी धुआँ बन कर
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यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
हम ने तुझे इस दिल से भुलाया तो नहीं है
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हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
हंगामा बपा होता है आग़ाज़ से पहले
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