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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आफ़ताब हुसैन

1962 | ऑस्ट्रिया

विख्यात पाकिस्तानी शायर, ऑस्ट्रिया में प्रवास, संजीदा शायरी पसंद करने वालों में प्रतिष्ठित।

विख्यात पाकिस्तानी शायर, ऑस्ट्रिया में प्रवास, संजीदा शायरी पसंद करने वालों में प्रतिष्ठित।

आफ़ताब हुसैन

ग़ज़ल 120

अशआर 41

वो यूँ मिला था कि जैसे कभी बिछड़ेगा

वो यूँ गया कि कभी लौट कर नहीं आया

हाल हमारा पूछने वाले

क्या बतलाएँ सब अच्छा है

कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए

मैं अपनी ज़िंदगी आसान करने वाला हूँ

एक मंज़र है कि आँखों से सरकता ही नहीं

एक साअ'त है कि सारी उम्र पर तारी हुई

लोग किस किस तरह से ज़िंदा हैं

हमें मरने का भी सलीक़ा नहीं

पुस्तकें 7

 

ऑडियो 15

अपना दीवाना बना कर ले जाए

अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं

कभी जो रास्ता हमवार करने लगता हूँ

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