आफ़ताब हुसैन
ग़ज़ल 35
अशआर 40
वो यूँ मिला था कि जैसे कभी न बिछड़ेगा
वो यूँ गया कि कभी लौट कर नहीं आया
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कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
मैं अपनी ज़िंदगी आसान करने वाला हूँ
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लोग किस किस तरह से ज़िंदा हैं
हमें मरने का भी सलीक़ा नहीं
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अभी दिलों की तनाबों में सख़्तियाँ हैं बहुत
अभी हमारी दुआ में असर नहीं आया
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किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
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