वस्ल आसान है क्या मुश्किल है
वस्ल आसान है क्या मुश्किल है
तुझ को ये ध्यान है क्या मुश्किल है
वज़्अ का ध्यान है क्या मुश्किल है
दोस्त नादान है क्या मुश्किल है
होंट पर जान है क्या मुश्किल है
मुश्किल आसान है क्या मुश्किल है
हाए दीवाना बना कर कहना
फिर भी इक शान है क्या मुश्किल है
अब जगह चाहिए वहशत को मिरी
तंग मैदान है क्या मुश्किल है
जिस को मर मिट के मिटाया था अभी
फिर वही ध्यान है क्या मुश्किल है
बे-बुलाए कहीं जाने के नहीं
आ पड़ी आन है क्या मुश्किल है
हम न उठते हैं न वो देते हैं
हाथ में पान है क्या मुश्किल है
हम को समझाए समझ नासेह की
फिर ये एहसान है क्या मुश्किल है
मेरे बद-अहद को अल्लाह रखे
मौत आसान है क्या मुश्किल है
उस ने रक्खा है वो दरबाँ जिस से
जान-पहचान है क्या मुश्किल है
शैख़ करता है बुतों की ग़ीबत
फिर मुसलमान है क्या मुश्किल है
हुस्न पर ख़ल्क़ मिटी जाती है
जो है क़ुर्बान है क्या मुश्किल है
हिज्र में जान निकलती नहीं आह
ये भी अरमान है क्या मुश्किल है
बंदगी बुत की ख़ुदा के बंदे
कुफ़्र ईमान है क्या मुश्किल है
चारागर को है मिरे फ़िक्र-ए-दवा
दर्द ही जान है क्या मुश्किल है
बज़्म में ज़हर उगलने को अदू
दर पे दरबान है क्या मुश्किल है
यूँ तो पहले भी मोहब्बत थी 'हफ़ीज़'
अब तो ईमान है क्या मुश्किल है
- पुस्तक : Kulliyat-e-Hafeez Jaunpuri (पृष्ठ Ghazal Number-260 Page Number-222)
- रचनाकार : Tufail Ahmad Ansari
- प्रकाशन : Qaumi Council Baraye Farogh-e-urdu Zaban (2010)
- संस्करण : 2010
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